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Sunday, 12 February 2012

तेरी उम्मीद, तेरा इंतज़ार, जब से है



तेरी उम्मीद, तेरा इंतज़ार, जब से है
न शब् को दिन से शिकायत न दिन को शब् से है
since the time I am hoping and awaiting you 
nights have no complain from days and days have no complaints from night

किसी का दर्द हो, करते हैं तेरे नाम रक़म
गिला है जो भी किसी से तेरी सबब से है
who so ever hurts me I attribute it to you
whatever complaints I have, the reason is you

हुआ है जब से दिल-ए-नासबूर बेकाबू
कलाम तुझसे नज़र को बड़ी अदब से है
[नासबूर=impatient]
whenever the impaitened heart gets out of control
my eyes talk to you with great mannerism

अगर शरार है तो भड़के, जो फूल है तो खिले
तरह तरह की तलब तेरे रंग-ए-लब से है
[शरार = lightening  ]
if she  is lighting then let her struck, if she is flower then let her blossom
different different urges are there for the colur of her lips

कहाँ गए शब्-ए-फुरक़त के जागनेवाले
सितारा-ए-सहर हमकलाम कब से है
[शब्-ए-फुरक़त = night of seperation,  हमकलाम = conversant]
where have gone those who are awoke during the night of seperation
stars of dawn are in conversation for a long time

फैज़ अहमद 'फैज़'


تیری امید تیرا انتظار جب سے ہے
نہ شب کو دیں سے شکایت نہ دیں کو شب سے ہے

کسی کا درد ہو، کرتے ہیں تیرے نام رقم
گلا ہے جو بھی کسی سے تیری سبب سے ہے

ہوا ہے جب سے دل ا ناصبور بےقابو
کلام تجھسے نظر کو بدی ادب سے ہے

اگر شرار ہے تو بھڑکے جو پھول ہے تو کھلے
طرح طرح کی طلب تیرے رنگ ا لب سے ہے

کہاں گئے شب ا فرکت کے جاگنوالے
ستارہ ا سحر ہمکلام کب سے ہے

فیض احمد فیض

terii ummiid teraa i.ntazaar jab se hai
na shab ko din se shikaayat na din ko shab se hai
kisii kaa dard ho karate hai.n tere naam raqam
gilaa hai jo bhii kisii se terii sabab se hai
huaa hai jab se dil-e-naasabuur beqaabuu
kalaam tujhase nazar ko ba.Dii adab se hai
[naasabuur=impatient]
agar sharar hai to bha.Dake, jo phuul hai to khile
tarah tarah kii talab tere rang-e-lab se hai
kahaa.N gaye shab-e-furqat ke jaaganevaale
sitaaraa-e-sahar ham-kalaam kab se hai

Faiz Ahmad 'Faiz'

Saturday, 17 December 2011

dono jahan teri muhabbat mein haar ke






दोनों जहाँ तेरी मुहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब्-ए-गम गुज़ार के
[शब्-ए-गम = night of dispair ]

دونو  جہاں  تیری  محبّت  میں  ہار  کے
وو  جا  رہا  ہے  کوئی  شب ا گم  گزار  کے

dono jahaan teri mohabbat mein haar ke
wo jaa rahaa hai koii shab-e-Gam guzaar ke

वीरां है मैकदा, ख़म-ओ-सागर उदास है
तुम क्या गए के रूठ गए दिन बहार के
[वीरां = empty, मैकदा = bar, ख़म-ओ-सागर = glass and wine ]

ویران  ہے  میکدہ  خام و ساگر  اداس  ہے
تم  کیا  گئے  کے  روٹھ  گئے  دیں  بہار  کے 

viiraan hai maikadaa Khum-o-saaGar udaas hai
tum kyaa gaye ke ruuth gaye din bahaar ke


दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझसे भी दिलफरेब है गम रोज़गार के
[दिलफरेब  = deceptive]

دنیا  نے  تیری  یاد  سے  بیگانہ  کر  دیا
تجھسے  بھی  دلفریب  ہے  گم  روزگار  کے 

duniyaa ne terii yaad se begaanaa kar diyaa
tujh se bhii dil fareb hai.n Gam rozagaar ke

इक फुर्सत-ए-गुनाह मिली, वो भी चार दिन
देखे हैं हमने हौसले परवरदिगार के
[फुर्सत-ए-गुनाह = time to do sin/love, हौसले = confidence, परवरदिगार = almighty]

اک  فرسٹ ا گناہ  ملی  وو  بھی  چار  دیں
دیکھ  ہیں  ہمنے  حوصلے  پروردگار کے 

ik fursat-e-gunaah milii, wo bhii chaar din
dekhe hai.n ham ne hausale parvar-digaar ke

भूले से मुस्कुरा तो दिए थे वो वो आज 'फैज़'
मत पूछ वलवले दिल-ए-नाकर्दाकार के
[वलवले = enthusiasm, दिल-ए-नाकर्दाकार = insensitive heart ]

بھلے  سے  مسکرا  تو  دے  تھے  وو  آج  'فیض'
مت  پوچھ  ولولے  دل ا ناکرداکار  کے

bhuule se muskuraa to diye the wo aaj 'Faiz'
mat puuchh val-vale dil-e-naa-kardaakaar ke


फैज़ अहमद 'फैज़'

فیض احمد 'فیض'

Faiz Ahmad 'Faiz'

Adding my Makhta to this

तस्सवूर में तेरी सोचता है 'मुज़्तरिब',
क्या आयेंगे दिन वो फिर से प्यार के ?
[तस्सवूर में तेरी = thinking about you ]

تصّور  میں  تیری  سوچتا  ہے  مضطرب
کیا ااینگے  دیں  وو  پھر  سے  پیار  کے ؟

 tasavvur mein teri sochta hai muztarib
kya aayenge din wo phir se pyaar ke ?

Putting down a rough translation of this ghazal:

having lost both the worlds in your love
he is leaving after the night of dispair

the bar is vacant, the jar and the wine sad
you left and so did the days of joy

the world has devoid me of your thoughts
but to you, everydays' worries are more deceptive 

 the time to love that i got was just few days
i have seen the confidence of the god
unknowingly, when she smiled at you o 'Faiz'
look at the happiness of your insensitive heart

Sunday, 23 October 2011

आये कुछ अब्र कुछ शराब आये..




आये कुछ अब्र कुछ शराब आये
उसके बाद आये जो अज़ाब आये
[अब्र = cloud , अज़ाब=trouble, difficulty]

बाम-ए-मीना से माहताब उतरे
दस्त-ए-साकी  में आफताब आये
[बाम-ए-मीना = terrace/top of wine container, माहताब = moon, दस्त-ए-साकी = hands of  lady who serves wine, आफताब = sun ]

हर रग-ए-खूँ में फिर चरागाँ हो
सामने फिर वो बेनकाब आये
[ रग-ए-खूँ = blood in the veins, चरागाँ = lighting celebration ]

उम्र के हर वरक पे दिल को नज़र
तेरी महर-ओ-वफ़ा के बाब आये
[वरक = layer,महर-ओ-वफ़ा = benovelance & faith , बाब = company ]

कर रहा था गम-ए-जहां का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आये

ना गई तेरे गम की सरदारी
दिल में रोज़ यूँ इंक़लाब आये
[सरदारी = leadership, इंक़लाब = revolution]

जल गए बज़्म-ए-गैर के दर-ओ-बाम
जब भी हम खानामां खराब आये
[बज़्म-ए-गैर = other's party, दर-ओ-बाम = doors and terrace,  ]

इस तरह अपनी खामोशी गूंजी
गोया हर सिम्त से ज़वाब आये
[गोया = as if,  सिम्त = direction]

'फैज़' थी राह सर बा सर मंजिल
हम जहाँ भी पहुचे कामयाब आये
['फैज़' = poet's name/blessed]

फैज़ अहमद 'फैज़'

adding my makhta to it..
 'मुज़्तरिब' हर सिम्त उजाला फैल गया
रुख-ए-रौशन जो आज  बेहिजाब आये
[रुख-ए-रौशन = bright face, बेहिजाब = without veil ]

aaye kuchh abr kuchh sharaab aaye
us ke baad aaye jo azaab aaye
baam-e-miinaa se maahataab utare
dast-e-saaqii me.n aaftaab aaye
har rag-e-Khuu.N me.n phir charaaGaa.N ho
saamane phir wo benaqaab aaye

umr ke har waraq pe dil ko nazar
terii meher-o-wafaa ke baab aaye

kar rahaa thaa Gam-e-jahaa.N kaa hisaab
aaj tum yaad behisaab aaye

na gaii tere Gam kii saradaarii
dil me.n yuu.n roz inqalaab aaye

jal uThe bazm-e-Gair ke dar-o-baam
jab bhii ham Khaanamaa.N_Kharaab aaye
is tarah apanii Khamashii guu.Njii
goyaa har simt se jawaab aaye
'Faiz' thii raah sar basar ma.nzil
ham jahaa.N pahu.Nche kaamayaab aaye

Faiz Ahmad 'Faiz'

Adding my makhta to it

'Muztarib' har simt ujaala phail gaya
rukh-e-raushan jo aaj behijaab aaye

Kutte

ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
कि बक्शा गया जिनको ज़ौक-ए-गदाई
ज़माने की फटकार सरमाया इनका
जहाँ भर की दुत्कार इनकी कमाई
न आराम शब् को न राहत सवेरे
गज़ालत में घर, नालियों में बसेरे
जो बिगड़े तो इक दुसरे से लड़ा दो
ज़रा एक रोटी का टुकड़ा दिखा दो
ये हर एक की ठोकरे खाने वाले
ये फ़ाकों से उकता के मर जाने वाले
ये मजलूम मखलूक गर सर उठाये
तो इंसां सब सरकशी भूल जाए
ये चाहे तो दुनिया को अपना बना लें
ये आकाओं के हड्डियाँ तक चबा लें
कोई इनको एह्शाह-ए-ज़िल्लत दिला दे
कोई इनकी सोई हुई दम हिला दे

फैज़ अहमद 'फैज़'

Wednesday, 14 September 2011

Kab yaad mein tera saath nahin




कब याद में तेरा साथ नहीं, कब हाथ में तेरा हाथ नहीं
सद शुक्र की अपनी रातों में अब हिज्र की कोई रात नहीं

मैंदान-ए-वफ़ा दरबार नहीं, यां नाम-ओ-नसब की पूछ कहाँ
आशिक तो किसी का नाम नहीं, कुछ  इश्क किसी के ज़ात नहीं

जिस धज से कोई मकतल में गया वो शान सलामत रहती है
ये जान तो आनी जानी है इस जाँ की कोई बात नहीं

गर बाज़ी इश्क की बाज़ी है, जो चाहो  लगा दो, डर कैसा
गर जीत गए तो क्या कहना, हारे भी तो बाज़ी मात नहीं

मुश्किल है गर हालत वहां, दिल बेच आये, जान दे आये
दिलवालों कूचा-ए-जाना में में क्या ऐसे भी हालत नहीं

फैज़ अहमद 'फैज़'

Tuesday, 14 June 2011

Interview of Faiz Ahmad Faiz

Putting up a gem, an interview of Faiz saab and his wife Alys Faiz. In this clip Ahmad 'Faraz' is seated along with 'Faiz' saab. This year we are celebrating his birth centenary.

Friday, 6 May 2011

इक नज़्म इक ग़ज़ल 'फैज़' की



iss waqt to yun lagta hai kahin kutch bhee nahin hai

इस वक़्त तो यूँ लगता है कहीं कुछ भी नहीं है
महताब न सूरज न अँधेरा न सवेरा
आँखों के दरीचों  में किसी हुस्न की चिलमन
और दिल की पनाहों  में किसी दर्द का डेरा
शाखों में ख्यालों की घनी पेड़ की शायद
अब आके करेगा न कोई ख़ाब बसेरा
शायद वो  कोई वहम था मुमकिन है सुना हो
गलियों में किसी  चाप का इक आखिरी फेरा
अब बैर न उल्फत  न रब्त न रिश्ता
अपना कोई तेरा न पराया कोई मेरा
माना की ये सुनसान घडी सख्त घडी है
लेकिन मेरे दिल यह तो फकत एक घडी है
हिम्मत करो जीने  को अभी उम्र पड़ी है

[महताब = moon, चिलमन = veil; उल्फत = love, रब्त = dearness/closeness; फकत = mere ]

फैज़ अहमद 'फैज़'

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nahin nigaah mein manzil to justjuu he sahi

नहीं निगाह में मंजिल तो जुस्तजू ही सही
नहीं विसाल मुयस्सर तो आरजू ही सही
[ जुस्तजू = desire, विसाल = meeting; मुयस्सर = possible ]


न तन में खून फराहम न अश्क आँखों में
नवाज़-ए-शौक़ तो वाजिब है बे-वज़ू ही सही
[ फराहम = gathered at one place, अश्क = tears; नवाज़-ए-शौक़ = prayer; बे-वज़ू = without abulation ]

किसी तरह तो जमे बज़्म मैकदों वालों
नहीं जो बादा-ओ-सागर तो हां-ओ-हू ही सही
[बज़्म = gaterhing; मैकदों वालो = winers;बादा-ओ-सागर = wine and wine holder; हां-ओ-हू = encore]


है इंतज़ार कठिन तो जब तलक ये दिल
किसी के वादा-ए-फर्दा की गुफ्तगू ही सही
[वादा-ए-फर्दा = promise for tommorow; गुफ्तगू = conversation]


दयार-ए-गैर में  मरहम अगर नहीं कोई
तो 'फैज़' ज़िक्र-ए-वतन अपने रू-बा-रू ही सही
[दायर-ए-गैर = alien land; ज़िक्र-ए-वतन = mention of homeland;रू-बा-रू = face to face]

फैज़ अहमद 'फैज़'

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Sunday, 31 October 2010

mujhse pehli si muhabbat mere mahboob na maang..

Below is a nazm by 'Faiz'. The translation is by Kuldeep Salil.

मुझसे पहली, सी मुहब्बत मेरे महबूब ना मांग
Ask me not for love, O dear like before

मैंने समझा था की तू है तो दरखशां है हयात
तेरा गम है तो गम-ए-दहर का झगडा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है
[दरखशां = bright, हयात = life, गम-ए-दहर = sorrows of life, सबात = permanence/stability ]

With you around, I had thought, life is all aglow,
when I sorrow for you, I need not bother about the sufferings of the world
your beauty gives permanence to the spring season
that nothing else is worthwhile in the world except your eyes, so I had thought

तू जो मिल जाए तो तकदीर निगू हों जाये
यूँ ना था, मैंने फकत चाहा था यूँ हों जाये
और भी दुःख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
[निगू = supplicant/subservient, फकत = merely, वस्ल = meeting, राहतें = happiness ] 

But that is not it;
There are other sorrows too in world, apart from the sorrows of love
and other joy beside the joys of union

अनगिनत सदियों के तारीक बहीमाना तिलिस्म
रेशम-ओ-अतलस-ओ-कमख्वाब के बुनवाये हुए
जा-बा-जा बिकते हुए कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म
ख़ाक में लिथड़े हुए, खूं में नहलाये हुए
[तारीक = darkness, बहीमाना = dreadful/animalistic, तिलिस्म = magic
रेशम-ओ-अतलस-ओ-कमख्वाब = silk and satin and brocade, जा-बा-जा = here and there
कूचा-ओ-बाज़ार = lanes and markets]

A web of brutal darkness woven over centuries,
human bodies on sale in the street and the market place,
bodies bathed in dust and blood

जिस्म निकले हुए अमराज़ के तन्नूरों से
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र, क्या कीजे
अब भी दिलकश  है तेरा हुश्न, मगर क्या कीजे
[अमराज़ = diseases,तन्नूरों = ovens , पीप = pus, नासूरों = ulcer, दिलकश = heart warming ]

Diseased bodies with festering wounds
The eye is arrested by all this, it cannot help;
your beauty though is as attractive as before

और भी दुःख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब ना मांग.

There are other sorrows also in the world beside the sorrows of love
and othe joys apart from joys of union
do not ask me, dear, for love like before.

फैज़ अहमद 'फैज़'

Wednesday, 27 October 2010

Aaj Baazar mein paabajaulaa chaloo..

आज बाज़ार में पाबजौला चलो
चस्म-ए-नम , जाँ-ए-शोरीदा काफी नहीं
तोहम-ए-इश्क पोशीदा काफी नहीं
आज बाज़ार में पाबजौला चलो
[पाबजौला = in fetter, चस्म-ए-नम = moist eyes, जाँ-ए-शोरीदा = sad soul, पोशीदा = concealed]

दस्त-ए-अफशां चलो, मस्त-ओ-रक्सां चलो
खाक बरसर चलो खूबदामां चलो
राह ताकता है सब शहर-ए-जाना चलो
[दस्त-ए-अफशां = clapping/rotating hands; मस्त-ओ-रक्सां = mad dancers; खाक बरसर = laborers, खूबदामां = drenched in blood];

हाकिम-ए-शहर भी, मुहब-ए-आम भी
तीर-ए-इलज़ाम भी, संग-ए-दुशनाम भी
सुबह-ए-नाशाद भी, रोज़-ए-नाकाम भी
इनका दमसाज़ अपने सिवा कौन है
शहर-ए-जाना में अब वासफा कौन है
दस्त-ए-कातिल के शायां रहा कौन है
रुखसत-ए-दिल बाँध लो, दिलफिगारो चलो
फिर हमही क़त्ल हों आये यारो चलो |
[हाकिम-ए-शहर = officers of town, मुहब-ए-आम = common man, संग-ए-दुशनाम = infamous, शायां = capable, दिलफिगारो = wounded heart]
फैज़ अहमद 'फैज़'

Wednesday, 14 April 2010

Gulon mein rang bhare..

कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीमकश को
ये खलिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
[तीर-ए-नीमकश = deep pierced arrow, खलिश = pain]
'ग़ालिब'
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हुआ जो तीर-ए-नज़र नीमकश तो क्या हासिल
मज़ा तो तब है जब सीने के आर पार चले
तालिब 'बागपती'
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गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौबहार चले
चले भी आओ की गुलशन का कारोबार चले
[बाद-ए-नौबहार = wind of new spring]

क़फ़स उदास है यारों सबा से कुछ तो कहो
कहीं तो बहर-ए-खुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले
[क़फ़स = cage; सबा = breeze; बहर = ocean; ]

कभी तो सुब्ह तेरे कुञ्ज-ए-लब से हों आगाज़
कभी तो शब् सर-ए-काकुल से मुश्कबार चले
[कुञ्ज-ए-लब = corner of your lips, आगाज़ = start, शब् = night,
सर-ए-काकुल = curls of hair, मुश्कबार = fragrant]

बड़ा है दिल का रिश्ता, यह दिल गरीब सही
तुम्हारे नाम पे आयेंगे गमगुसार सही
[गमगुसार = sympathisers]

जो हम पे गुज़री है सो गुज़री मगर शब्-ए-हिज्राँ
हमारे अश्क तेरी आकबत संवार चले
[शब्-ए-हिज्राँ = night of seperation, अश्क = tears, आकबत = future]

हुजूर-ए-यार हुई दफ्तर-ए-जुनून की तलब
गिरह में ले के गरेबान का तार तार चले
[तलब = desire,गिरह = measurement of cloth, knot, गरेबान = collor]

मकाम 'फैज़' कोई राह में जचा ही नहीं
जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले
[मकाम = destination; कू-ए-यार  = lane of beloved, सू-ए-दार = towards gallow]

फैज़ अहमद 'फैज़'

Putting my own makhta to this beautiful ghazal

संगदिल गुदाज़ न हो गर्मी-ए-अश्क से 'प्रशांत'
दर पे उसके हम रो के जार जार चले
[संगदिल = stone heart; गुदाज़ = melt; गर्मी-ए-अश्क = heat of tears]