गो ज़रा सी बात पे बरसों के याराने गए,
लेकिन इतना तो हुआ की कुछ लोग पहचाने गए
मैं इसे शोहरत कहूं या अपनी रुसवाई कहूं
मुझसे से पहले उस गली मैं मेरे अफ़साने गए
यूँ तो वो मेरी रग-ऐ-जां से थे नज़दीक तर
आंसुओं के धुंध में लेकिन न पहचाने गए
वहशतें कुछ इस तरह अपना मुक़द्दर हो गई
हम जहाँ पहुचे हमारे साथ वीराने गए
क्या क़यामत है की 'खातिर' कुश्ता-ऐ-शब् भी थे हम
सुबह जब हुई तो मुजरिम हम ही गर्दाने गए
लेकिन इतना तो हुआ की कुछ लोग पहचाने गए
मैं इसे शोहरत कहूं या अपनी रुसवाई कहूं
मुझसे से पहले उस गली मैं मेरे अफ़साने गए
यूँ तो वो मेरी रग-ऐ-जां से थे नज़दीक तर
आंसुओं के धुंध में लेकिन न पहचाने गए
वहशतें कुछ इस तरह अपना मुक़द्दर हो गई
हम जहाँ पहुचे हमारे साथ वीराने गए
क्या क़यामत है की 'खातिर' कुश्ता-ऐ-शब् भी थे हम
सुबह जब हुई तो मुजरिम हम ही गर्दाने गए
' खातिर गजनवी '