ऐसी ही एक निशान को हकीम मोमिन खान ने ग़ज़ल का रूप दिया है। कई सुखनवर इसे उर्दू मौसिकी की सबसे बेहतरीन ग़ज़ल मानते हैं , पर मैं इसे मज़हर कहूँगा एक मुज़्तरिब शायर की याद और बेबसी का । ग़ज़ल कुछ इस तरह है:
वो जो हम में तुम में करार था तुम्हें याद हो की न याद हो,
वहीं यानी वादा निबाह का तुम्हे याद हो की न याद हो ।
वहीं यानी वादा निबाह का तुम्हे याद हो की न याद हो ।
[करार = peace, calm]
वो नए गिले वो शिकायतें वो मजे मजे की हेकायतें ,
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो की न याद हो।
वो नए गिले वो शिकायतें वो मजे मजे की हेकायतें ,
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो की न याद हो।
[हेकायतें = stories]
कोई बात अगर ऐसी हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी,
तो बयां से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो की न याद हो।
सुनो ज़िक्र है किसी साल का, वो वादा मुझसे था आप का,
वो निबाहने का ज़िक्र क्या, तुम्हें याद हो की न याद हो।
कभी हम में तुम में भी चाह थी , कभी हम में तुम में भी राह थी,
कभी हम भी तुम भी थे आशना तुम्हें याद हो की न याद हो।
[ चाह = affection, राह = understanding, आशना= friends]
हुए इत्तेफाक से अगर बहम , वो वफ़ा जताने को दम-ब-दम,
गिला-ऐ-मलामत-ऐ -अर्क़बा , तुम्हे याद हो की न याद हो।
[ इत्तेफाक = coincedence, बहम = togeather, गिला-ऐ-मलामत-ऐ -अर्क़बा = catechism of complaints ]
वो जो लुत्फ़ मुझ पे था बेशतर , वो करम के हाथ मेरे हाथ पर,
मुझे सब है याद ज़रा ज़रा, तुम्हें याद हो के न याद हो।
वो जो लुत्फ़ मुझ पे था बेशतर , वो करम के हाथ मेरे हाथ पर,
मुझे सब है याद ज़रा ज़रा, तुम्हें याद हो के न याद हो।
[ लुत्फ़ = fun, बेशतर = continuous]
कभी बैठे सब रू-बा-रू तो इशारतों से हे गुफ्तगू,
वो बयां शौक़ का बरमला तुम्हे याद हो के न याद हो।
[ रू-बा-रू = face to face, इशारतों = signs, गुफ्तगू = conversation,बयां = rendition, बरमला = openly]
वो बिगड़ना वस्ल की रात का; वो न मानना किसी भी बात का,
वो नहीं नहीं की हर आन अदा, तुम्हें याद हो की न याद हो।
वो बिगड़ना वस्ल की रात का; वो न मानना किसी भी बात का,
वो नहीं नहीं की हर आन अदा, तुम्हें याद हो की न याद हो।
[ वस्ल = meeting]
जिसे आप गिनते थे आशना , जिसे आप कहते थे बावफा,
मैं वही हूँ मोमिन-ऐ-मुब्त्ल्ला तुम्हे याद हो की न याद हो।
जिसे आप गिनते थे आशना , जिसे आप कहते थे बावफा,
मैं वही हूँ मोमिन-ऐ-मुब्त्ल्ला तुम्हे याद हो की न याद हो।
[ आशना = friend बावफा = fiedel मोमिन-ऐ-मुब्त्ल्ला = Momin - the lover ]
मोमिन पेशे से हकीम थे इस लिए इन्हे हकीम मोमिन कहा जाता है. यह ग़ालिब, ज़ौंक़ और ज़फ़र के हम उम्र थे।
[तर्क (remove) , खल्क (world), शाद (happy), जीस्त (Life),गुबार (cloud of dust), सुकुउत (silence), सुखनवर (poets), मज़हर (manifestation), मुज़्तरिब (sad,restless) ]