फ़िक्र ही ठहरी तो दिल को फ़िक्र-ए-खूबां क्यूँ न हों ?
ख़ाक होना है तो ख़ाक-ए-कू-ए-जाना क्यूँ न हों ?
[फ़िक्र = tension/stress, खूबां = beautiful/Beloved , ख़ाक = annihiliate, कू-ए-जाना = lane of beloved ]
जीस्त है जब मुस्तकिल आवारागर्दी ही का नाम,
अक्ल वालों फिर तवाफ़-ए- कू-ए-जाना क्यूँ न हों ?
[मुस्तकिल = continuous, तवाफ़ = greeting of sacred/Circumbulation]
इक न इक रीफत के आगे सजदा लाजिम है तो फिर
आदमी महव-ए-सजूद-ए-सिर-ए-खूबां क्यूँ न हों ?
[रीफत = loftiness/peak ; सजदा = prostrate/prayer, महव = drown/immerse सजूद = prostrate ]
इक न इक ज़ुल्मत से जब बाबस्ता रहना है तो 'जोश'
जिन्दगी पर साया-ए-जुल्फ-ए-परीशान क्यूँ न हों ?
' जोश मलीहाबाद'
Appending my makhta to it.
शब्-ओ-रोज़ की तल्खियों से जब मुज्महिल रहना है 'प्रशांत'
जिंदगी फिर ज़ेर-ए-पा-ए-जाना क्यूँ न हों ?
[शब्-ओ-रोज़ = night and day, तल्खियों = bitterness, मुज्महिल = distressed/disappointed, ज़ेर-ए-पा-ए-जाना = beneath the beloved's feet]