कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीमकश को
ये खलिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
[तीर-ए-नीमकश = deep pierced arrow, खलिश = pain]
'ग़ालिब'
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हुआ जो तीर-ए-नज़र नीमकश तो क्या हासिल
मज़ा तो तब है जब सीने के आर पार चले
तालिब 'बागपती'
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गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौबहार चले
चले भी आओ की गुलशन का कारोबार चले
[बाद-ए-नौबहार = wind of new spring]
क़फ़स उदास है यारों सबा से कुछ तो कहो
कहीं तो बहर-ए-खुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले
[क़फ़स = cage; सबा = breeze; बहर = ocean; ]
कभी तो सुब्ह तेरे कुञ्ज-ए-लब से हों आगाज़
कभी तो शब् सर-ए-काकुल से मुश्कबार चले
[कुञ्ज-ए-लब = corner of your lips, आगाज़ = start, शब् = night,
सर-ए-काकुल = curls of hair, मुश्कबार = fragrant]
बड़ा है दिल का रिश्ता, यह दिल गरीब सही
तुम्हारे नाम पे आयेंगे गमगुसार सही
[गमगुसार = sympathisers]
जो हम पे गुज़री है सो गुज़री मगर शब्-ए-हिज्राँ
हमारे अश्क तेरी आकबत संवार चले
[शब्-ए-हिज्राँ = night of seperation, अश्क = tears, आकबत = future]
हुजूर-ए-यार हुई दफ्तर-ए-जुनून की तलब
गिरह में ले के गरेबान का तार तार चले
[तलब = desire,गिरह = measurement of cloth, knot, गरेबान = collor]
मकाम 'फैज़' कोई राह में जचा ही नहीं
जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले
[मकाम = destination; कू-ए-यार = lane of beloved, सू-ए-दार = towards gallow]
फैज़ अहमद 'फैज़'
Putting my own makhta to this beautiful ghazal
संगदिल गुदाज़ न हो गर्मी-ए-अश्क से 'प्रशांत'
दर पे उसके हम रो के जार जार चले
[संगदिल = stone heart; गुदाज़ = melt; गर्मी-ए-अश्क = heat of tears]
Putting my own makhta to this beautiful ghazal
संगदिल गुदाज़ न हो गर्मी-ए-अश्क से 'प्रशांत'
दर पे उसके हम रो के जार जार चले
[संगदिल = stone heart; गुदाज़ = melt; गर्मी-ए-अश्क = heat of tears]
11 comments:
Kakka the first sher of "hua jo teer-e-nazar" is by Mahendra Singh Bedi.
Please review 2nd sher is this really belongs to Talib Sahab... or Mohinder singh bedi
Please review 2nd sher is this really belongs to Talib Sahab... or Mohinder singh bedi
Hua jo teer e nazar, this sher is by mahendrM Singh bedi ji , he is admirer of faiz ahmed ji and that's why mehdi hassan sa'ab added this sher to his ghazal .
Bhai ye Bedi sahab ki poori ghazal nhi mil Rahi mujhe... Plz help
Yeh Bedi sahab ki Ghazal nahi Faiz ahmad Faiz ki hai..ek aadh sher Bedi sahab ne jode hai isme.
Yeh Bedi sahab ki Ghazal nahi Faiz ahmad Faiz ki hai..ek aadh sher Bedi sahab ne jode hai isme.
2nd sher belongs to janaab Mahendra sing bedi ...
You are right sir..faiz saab ne mehndi saab se Mahendra sing bedi ji ki dosti me urge kiya tha is ghazal ko gaate waqt usme add karne ke liye
हुआ जो तीर-ए-नज़र नीमकश तो क्या हासिल
मज़ा तो तब है जब सीने के आर पार चले
तालिब 'बागपती'
yeh Mahendra Singh Bedi Sahab ka sher hai....
Rightly said
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