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Sunday 31 October 2010

mujhse pehli si muhabbat mere mahboob na maang..

Below is a nazm by 'Faiz'. The translation is by Kuldeep Salil.

मुझसे पहली, सी मुहब्बत मेरे महबूब ना मांग
Ask me not for love, O dear like before

मैंने समझा था की तू है तो दरखशां है हयात
तेरा गम है तो गम-ए-दहर का झगडा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है
[दरखशां = bright, हयात = life, गम-ए-दहर = sorrows of life, सबात = permanence/stability ]

With you around, I had thought, life is all aglow,
when I sorrow for you, I need not bother about the sufferings of the world
your beauty gives permanence to the spring season
that nothing else is worthwhile in the world except your eyes, so I had thought

तू जो मिल जाए तो तकदीर निगू हों जाये
यूँ ना था, मैंने फकत चाहा था यूँ हों जाये
और भी दुःख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
[निगू = supplicant/subservient, फकत = merely, वस्ल = meeting, राहतें = happiness ] 

But that is not it;
There are other sorrows too in world, apart from the sorrows of love
and other joy beside the joys of union

अनगिनत सदियों के तारीक बहीमाना तिलिस्म
रेशम-ओ-अतलस-ओ-कमख्वाब के बुनवाये हुए
जा-बा-जा बिकते हुए कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म
ख़ाक में लिथड़े हुए, खूं में नहलाये हुए
[तारीक = darkness, बहीमाना = dreadful/animalistic, तिलिस्म = magic
रेशम-ओ-अतलस-ओ-कमख्वाब = silk and satin and brocade, जा-बा-जा = here and there
कूचा-ओ-बाज़ार = lanes and markets]

A web of brutal darkness woven over centuries,
human bodies on sale in the street and the market place,
bodies bathed in dust and blood

जिस्म निकले हुए अमराज़ के तन्नूरों से
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र, क्या कीजे
अब भी दिलकश  है तेरा हुश्न, मगर क्या कीजे
[अमराज़ = diseases,तन्नूरों = ovens , पीप = pus, नासूरों = ulcer, दिलकश = heart warming ]

Diseased bodies with festering wounds
The eye is arrested by all this, it cannot help;
your beauty though is as attractive as before

और भी दुःख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब ना मांग.

There are other sorrows also in the world beside the sorrows of love
and othe joys apart from joys of union
do not ask me, dear, for love like before.

फैज़ अहमद 'फैज़'

Wednesday 27 October 2010

Aaj Baazar mein paabajaulaa chaloo..

आज बाज़ार में पाबजौला चलो
चस्म-ए-नम , जाँ-ए-शोरीदा काफी नहीं
तोहम-ए-इश्क पोशीदा काफी नहीं
आज बाज़ार में पाबजौला चलो
[पाबजौला = in fetter, चस्म-ए-नम = moist eyes, जाँ-ए-शोरीदा = sad soul, पोशीदा = concealed]

दस्त-ए-अफशां चलो, मस्त-ओ-रक्सां चलो
खाक बरसर चलो खूबदामां चलो
राह ताकता है सब शहर-ए-जाना चलो
[दस्त-ए-अफशां = clapping/rotating hands; मस्त-ओ-रक्सां = mad dancers; खाक बरसर = laborers, खूबदामां = drenched in blood];

हाकिम-ए-शहर भी, मुहब-ए-आम भी
तीर-ए-इलज़ाम भी, संग-ए-दुशनाम भी
सुबह-ए-नाशाद भी, रोज़-ए-नाकाम भी
इनका दमसाज़ अपने सिवा कौन है
शहर-ए-जाना में अब वासफा कौन है
दस्त-ए-कातिल के शायां रहा कौन है
रुखसत-ए-दिल बाँध लो, दिलफिगारो चलो
फिर हमही क़त्ल हों आये यारो चलो |
[हाकिम-ए-शहर = officers of town, मुहब-ए-आम = common man, संग-ए-दुशनाम = infamous, शायां = capable, दिलफिगारो = wounded heart]
फैज़ अहमद 'फैज़'

Thursday 16 September 2010

jaan ka meri jaana na hua..

जाँ का मेरी जाना न हुआ,
अंजाम-ए-इश्क-ए-फ़साना न हुआ
[अंजाम-ए-इश्क-ए-फ़साना = end of love story]

यूँ तो फिरता हूं दर-ब-दर
पर तवाफ़-ए-कू-ए-जाना न हुआ
[तवाफ़-ए-कू-ए-जाना = circumbulation of beloved's lane ]

नम-ए-संग  हुआ है चस्म मेरा
आज फिर तेरा आना न हुआ
[नम-ए-संग = moist stone; चस्म = eyes]

हुए हैं कई कैस-ओ- फरहाद जहाँ में
'मुज़्तरिब' सा कोई दीवाना न हुआ
[कैस-ओ- फरहाद = Kaise (name of majnu) & Farhad]

'मुज़्तरिब'