As I promised the anonymous reader of my blog, I am putting this beautiful Ghazal by Seemab Akbarabaadi. Aashiq Husain whose takhallus was 'Seemab' Akbarabadi, was born in 1880 in Agra, India. He was a disciple of Daag Dehlvi. The ghazal goes as:
अब क्या बताऊँ मैंने तेरे मिलने से क्या मिला,
इरफ़ान-ए-गम हुआ मुझे दिल का पता मिला
[इरफ़ान = knowledge]
जब दूर तक न कोई फ़कीर-आशना मिला
तेरा नियाज़मंद तेरे दर से जा मिला
[नियाज़मंद = needy]
मंजिल मिली मुराद मिली मुद्दा मिला
सब कुछ मुझे मिला जो तेरा नक्श-ए-पा मिला
[नक्श-ए-पा = footprints]
या ज़ख्म-ए-दिल को चीर के सीने से फेंक दे
या ऐतराफ कर के निशान-ए-वफ़ा मिला
[ऐतराफ = admit]
'सीमाब' को शगुफ्ता न देखा तमाम उम्र
कमबख्त जब मिला हमें कम-आशना मिला
[शगुफ्ता = happy, कमबख्त = unfortunate, आशना=friend]
'सीमाब' अकबराबादी
Listen to this version of ghazal by K.L Sehgal
1 comment:
जालंधर ... १९६८ ... ३१ दिसम्बर ... रात साढे ग्यारह बजे ... माल रोड के चौराहे के बीचों बीच कुछ दोस्त बेसुरी आवाज़ में भाव विभोर हो इसे गा रहे थे और जैसे एक फ़रिश्ता ऊपर आकाश में हंस रहा था ... और फिर इसे कई बार सुना , सीमाब को करीब आ पढ़ा और वोह फ़रिश्ता हर baar हँसता ही रहा ... सहगल ने आवाज़ दे इसे मील का पत्थर बना दिया है ... गजलों के सफ़र में यहाँ रुक कर इसे पढ़ा जाता है ... यहाँ देख एक पुलक भारी सिहरन का एहसास हुआ ... शुक्रिया ...
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