ज़िंदगी में तो सभी प्यार किया करते हैं ,
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा ।
तू मिला है तो ये एहसास हुआ है मुझको
ये मेरी उम्र मोहब्बत के लिए थोडी है ,
इक ज़रा सा गम-ए-दौराँ का भी हक़ है जिस पर
मैं ने वो साँस भी तेरे लिए रख छोडी है ,
तुझ पे हो जाउंगा क़ुर्बान तुझे चाहूँगा
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा ।
अपने जज़्बात में नगमात रचाने के लिए
मैं ने धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे ,
मैं तसव्वुर भी जुदाई का भला कैसे करूँ
मैं ने क़िस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे ,
प्यार का बन के निगेहबान तुझे चाहूँगा
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा ।
तेरी हर चाप से जलते हैं ख़यालों में चिराग
जब भी तू आए जगाता हुआ जादू आए ,
तुझको छू लूँ तो फिर ए जान-ए-तमन्ना
मुझको देर तक अपने बदन से तेरी खुश्बू आए ,
तू बहारों का है उनवान तुझे चाहुउँगा
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा ।
[कातिल 'शिफाई' ]
3 comments:
Welcome to the gang PD !! "Mujhse nazren jo churaaoge toh mar jaaoonga, tujhko paane ke liye hadh se guzar jaaoonga, mein rahoon zinda ya mar jaaoon muqaddar mera, mein toh har haal main bus tera he kehlaaoonga, aye meri jaan meri jaan tujhe chaahunga, mein toh mar kar bhi meri jaan tujhe chaahunga"
Shrimaan ! Sabse pahle to ye kahunga ki us mabool sahayar ka naam "Qateel Shifayi" hai na ki "Qateel Shifaali". Doosri baat yah ki ye ghazal nahi hai janaab nazm hai.
Waise khayaal bahut khoobsurat hain.... Qateel sahab ke is khoobsurat kalaam ko yahan baantne ka shukriya.
Ravi Shankar, thanks a lot for the correction. I'll amend it.
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