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Monday, 8 February 2010

Ab kya bataun main tere milne se kya mila..

As I promised the anonymous reader of my blog, I am putting this beautiful Ghazal by Seemab Akbarabaadi.  Aashiq Husain whose takhallus was 'Seemab' Akbarabadi, was born in 1880 in Agra, India. He was a disciple of Daag Dehlvi. The ghazal goes as:

अब क्या बताऊँ मैंने तेरे मिलने से क्या मिला,
इरफ़ान-ए-गम हुआ मुझे दिल का पता मिला
[इरफ़ान = knowledge]

जब दूर तक न कोई फ़कीर-आशना मिला
तेरा नियाज़मंद तेरे दर से जा  मिला
[नियाज़मंद = needy]

मंजिल मिली मुराद मिली मुद्दा मिला
सब कुछ मुझे मिला जो तेरा नक्श-ए-पा मिला
[नक्श-ए-पा = footprints]

या ज़ख्म-ए-दिल को चीर के सीने से फेंक दे
या ऐतराफ कर के निशान-ए-वफ़ा मिला
[ऐतराफ = admit]

'सीमाब' को शगुफ्ता न देखा तमाम उम्र
कमबख्त जब मिला हमें कम-आशना मिला
[शगुफ्ता = happy, कमबख्त = unfortunate, आशना=friend]

'सीमाब' अकबराबादी

Listen to this version of ghazal by K.L Sehgal

Sunday, 7 February 2010

Teri baatein hee sunaane aaye...

 I am not sure about the first two shers but the rest is by Ahmad 'Faraz'. This ghazal is beautifully sung by Gulaam Ali. 

न उड़ा यूँ ठोकरों से मेरी ख़ाक-ए-कब्र ज़ालिम,
यही एक राह गयी है मेरे प्यार की निशानी

कभी इल्तिफात-ए-पैहम कभी मुझसे बदगुमानी
तेरी वो भी मेहरबानी तेरी ये भी मेहरबानी
[इल्तिफात-ए-पैहम = continuous mercy/favour; बदगुमानी = suspicion]

The Ghazal starts from here

तेरी बातें ही सुनाने आये
दोस्त भी दिल दुखाने आये

फूल खिलते हैं तो हम सोचते हैं
तेरे आने के ज़माने आये

ऐसी कुछ चुप सी लगी है जैसे
हम तुझे हाल सुनाने आये

इश्क तनहा है सर-ए-मंजिल-ए-गम
कौन ये बोझ उठाने आये

अजनबी दोस्त मुझे देख, की हम
कुछ तुझे याद दिलाने आये

अब तो रोने से भी दिल दुखता है
शायद अब होश ठिकाने आये

क्या कहीं फिर कोई बस्ती उजड़ी
लोग क्यूँ जस्न मनाने आये

सो रहो मौत के पहलु में 'फ़राज़'
नींद किस वक़्त न जाने आये

अहमद 'फ़राज़'