muddat mein vo phir taazaa mulaaqaat kaa aalam
Khaamosh adaaon mein vo jazbaat kaa aalam
allaah re vo shiddat-e-jazbaat kaa aalam
kuchh kah ke vo bhuulii hui har baat kaa aalam
nazron se wo masoom muhabbat ke tarawish
chehre pe wo mash look khalayat ka aalam
tere aariz se Dhalakate hue shabanam ke vo qatare
aaNkhon se jhalakataa huaa barasaat kaa aalam
vo nazaro.n hii nazaro.n me.n savaalaat kii duniyaa
vo aa.Nkho.n hii aa.Nkho.n me.n javaabaat kaa aalam
wo arsh se tabar baraste hue anvaar
wo tohmatt-e arz-o-samawaatt ka aalam
wo aariz-e- purnoor, wo kaif-e-nigaah shauq
jaise ke dam-e-soz munaazaat ka aalam
aalam meri nazaron mein jigar aur hee kutch hai
aalam hai agarche wahi din raat ka aalam
Jigar Moradabaadi
मुद्दत में वो फिर ताज़ा मुलाक़ात का आलम
खामोश अदाओं में वो जज़्बात का आलम
अल्लाह रे वो शिद्दत-ए-जज़्बात का आलम
कुछ कह के वो भूली हुई हर बात का आलम
नज़रों से वो मासूम मुहब्बत की तराविश
चेहरे पे वो मुशलूक ख़यालात का आलम
तेरे आरीज़ से ढलकते हुए शबनम के वो कतरे
आँखों से झलकता हुआ बरसात का आलम
वो नज़रों ही नज़रों में सवालात की दुनिया
वो आँखों ही आँखों में जवाबात का आलम
वो अर्श से तबार बरसते हुए अनवार
वो तोहमत्त-ए अर्ज़-ओ-समावात का आलम
वो आरीज़-ए-पूरणूर, वो कैफ़-ए-निगाह शौक़
जैसे के दम-ए-सोज़ मुनाज़ात का आलम
आलम मेरी नज़रों में जिगर और ही कुछ है
आलम है अगरचे वही दिन रात का आलम
जिगर मोरादाबादी
Jigar Moradabaadi
मुद्दत में वो फिर ताज़ा मुलाक़ात का आलम
खामोश अदाओं में वो जज़्बात का आलम
अल्लाह रे वो शिद्दत-ए-जज़्बात का आलम
कुछ कह के वो भूली हुई हर बात का आलम
नज़रों से वो मासूम मुहब्बत की तराविश
चेहरे पे वो मुशलूक ख़यालात का आलम
तेरे आरीज़ से ढलकते हुए शबनम के वो कतरे
आँखों से झलकता हुआ बरसात का आलम
वो नज़रों ही नज़रों में सवालात की दुनिया
वो आँखों ही आँखों में जवाबात का आलम
वो अर्श से तबार बरसते हुए अनवार
वो तोहमत्त-ए अर्ज़-ओ-समावात का आलम
वो आरीज़-ए-पूरणूर, वो कैफ़-ए-निगाह शौक़
जैसे के दम-ए-सोज़ मुनाज़ात का आलम
आलम मेरी नज़रों में जिगर और ही कुछ है
आलम है अगरचे वही दिन रात का आलम
जिगर मोरादाबादी
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