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Monday, 2 May 2011

Ab ke Tajdeed-e-wafa ka nahin imkaan jaana

  

अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानां
याद क्या तुझ को दिलाये तेरा पैमां जानां
[तजदीद-ए-वफ़ा = renewal of love/loyalty; इम्काँ = possibility; पैमां = promise]

यूं ही मौसम की अदा देख के याद आया है
किस कदर जल्द बदल जाते हैं इंसां जानां

ज़िंदगी तेरी अता थी तो तेरे नाम की है
हम ने जैसे भी बसर की तेरा एह्साँ जानां

दिल यह कहता है की शायद हो फ़सुर्दा तू भी
दिल की क्या बात करें दिल तो है नादां जानां
[फ़सुर्दा = sad]

अवल अवल की मुहब्बत के नशे याद तो कर
बेपिये भी तेरा चेहरा था गुलिस्तान जानां
[अवल अवल = first/ early]

आखिर आखिर तो ये आलम है की अब होश नहीं
रग-ए-मीना सुलग उठी की रग-ए-जां जानां
[रग-ए-मीना = viens of wineholder;]

मुद्दतों से ये आलम न तवक्को न उम्मीद
दिल पुकारे हे चला जाता है जानां जानां
[तवक्को = expectation]

हम भी क्या सादा थे हम ने भी समझ रखा था
गम-ए-दौरां से जुदा है गम-ए-जां जानां
[गम-ए-दौरां = sorrows of world; गम-ए-जां = sorrows of life]

अब के कुछ ऐसी सजी महफ़िल-ए-यारां जानां
सर-बा-जानू है कोई सर-बा-गिरेबां जानां
[सर-बा-जानू = head on knees; सर-बा-गिरेबां = head on neck]

हर कोई अपनी ही आवाज़ से काँप उठता है
हर कोई अपने ही साए से है हैराँ जानां

जिसको देखो वही ज़ंजीर-बा-पा लगता है
शहर का शहर हुआ दाखिल-ए-ज़िन्दां जाना
[ज़ंजीर-बा-पा = feet in chain; दाखिल-ए-ज़िन्दां = in jail]

अब तेरा ज़िक्र भी शायद ही ग़ज़ल में आये
और से और हुआ दर्द का उन्वाँ जानां
[उन्वाँ = start of book]

हम की रूठी हुई रुत को भी मना लेते थे
हम ने देखा ही नहीं था मौसम-ए-हिज्राँ जानां
[मौसम-ए-हिज्राँ = season of separation]

होश आये तो सभी ख़्वाब थे रेज़ा रेज़ा
जैसे उड़ते हुए औराक़-ए-परेशां जानां
[रेज़ा = torn; औराक़-ए-परेशां = strewn pages of a book]

अहमद 'फ़राज़'

Adding my makhta to this

वस्ल मुमकिन नहीं  है अपना जानां
'मुज़्तरिब' चिराग-ए-नातवाँ   है और तू तूफां जानां
[वस्ल  = meeting ; चिराग-ए-नातवाँ  = flickering lamp, तूफां = storm]

2 comments:

Yugal Joshi said...

Seriously yaar, ye seeti bajwaane waale mushaayra main even good shaayars look ordinary and out of place. Many times, the attempt is to get the crowd going rather than putting up meaningful stuff. Faraz was pretty good, but the kind of ghazals he has normally recited in mushaayras were not his best.

Prashant said...

The type of ghazals the poet recites depends on the audiance. Now in Mushairas where audiance are poet's peers he recites good shers. In mehfils where generally there is normal crowd, poets recites what crowd likes. Most of the clippings I find of Faraz is from mehfils.