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Saturday, 16 January 2010

Wo saal jo ab guzar gaya

I wanted to post this poem on 31st of 2009 but couldn't do that. Better late than never. My adios to 2009.

टूट के लम्हा बिखर गया
पल पल दिन में सिमट गया
दिन रात मे मिल के ओझल हुआ
और ऐसे ही माह निकल गया
सब चले गये हैं साथ उसके
जो साल अभी गुज़र गया


एक तारा था जो टूट गया
कोई प्यारा था वो रूठ गया
एक आस थी जो बिखर गयी
और साथ किस का छूट गया
सब चले गये है साथ उसके
जो साल अभी गुज़र गया


दे कर मुझको अल्फ़ाज़ गया
उलफत मुझ पे वो वार गया
सपनो को दे कर आकार गया
एक नई उर्जा को संचार गया
नये साल का तोहफा देकर
एक साल था जो अब गुज़र गया

[ अल्फ़ाज़ = words; उलफत =love]

'प्रशांत'

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