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Sunday, 6 December 2009

wo ik mozda hai jo kabhi na waqt pe aata hai....

जो गैब है जुस्तुजू उसका क्यूँ सताता है,
और नामाबर भी मुझे उसका पता नहीं बताता है
[गैब = mystry;  जुस्तुजू = quest; नामाबर = messenger]

अरसा-ए-आलम है बराहमी में तहलील
एक ही तस्वीर के कई अक्स नज़र आता है
[अरसा-ए-आलम = whole world ; बराहमी = confusion ;  तहलील = immersed; अक्स = reflection]

गफलत की जहाँ नें जिसकी पहले, फिर की खिलाफत
आज खल्क-ओ-खुल्द उसकी कब्र पे आंसों बहता है
[गफलत = ignore; खिलाफत = oppose; खल्क-ओ-खुल्द = Earth and Heaven]

हाथ तेरे हैं पर उन पे लकीरें कोई और बनता है
अहमक, उलझे हुए सिरों को तू क्यूँ कर सुलझाता है
[अहमक = idiot]

अनवार-ए-इलाही का न कर इंतज़ार 'प्रशांत'
 वो इक मोज़दा  है जो कभी न वक़्त पे आता है
[अनवार-ए-इलाही = divine help; मोज़दा = divine miracle ]

2 comments:

Pilot-Pooja said...

Very well written Prashant; the explanations make it all the more interesting!

Prashant said...

Pooja, thanks a lot for your appreciation.Hope you are doing well