Subconsciously I am writing what I have read before. So my Ghazals are becoming an extension of an extant composition (particularly the last two). Earlier, this would have stopped me to pursue composition any further, the fear of getting inspired, the fear that I'll imitate. But now I have decided that however similar my writings are I will write. I remember reading Gabriel Garcia Marquez somewhere that it’s very natural to imitate when one has just begun to write; the style will follow later. I hope someday I would have my own distinct style.
फ़िक्र-ए-फिराक-ए-यार का तराना बहुत हुआ
चले भी आओ के इश्क का फ़साना बहुत हुआ
[फ़िक्र-ए-फिराक-ए-यार = worry of seperation from beloved ; तराना = song; फ़साना = story]
[फ़िक्र-ए-फिराक-ए-यार = worry of seperation from beloved ; तराना = song; फ़साना = story]
जिस दिल-ए-मासूम की है तुमको उम्मीद
उस दिल को गुज़रे तो ज़माना बहुत हुआ
ज़ख्म-ए-दिल-ओ-जिगर है इश्क-ए-आराई
मेरे चारागर बस यह खजाना बहुत हुआ
[इश्क-ए-आराई = Ornament of Love; चारागर = healer/doctor; खजाना = treasure]
[इश्क-ए-आराई = Ornament of Love; चारागर = healer/doctor; खजाना = treasure]
जीत न जाए मुहब्बत से पिंडार मेरा
करो इश्क आशकार के यह बहाना बहुत हुआ
[पिंडार = pride, आशकार = reveal/express]
[पिंडार = pride, आशकार = reveal/express]
मुसाफिर उस राह का जिसका नहीं मंजिल-ए-अंजाम
संभल जाओ की जुनूं-ए-जाना बहुत हुआ
[जुनूं-ए-जाना = madness for beloved]
[जुनूं-ए-जाना = madness for beloved]
कुव्वत-ए-सब्र को जो समझते है तेरी नाहिफी
उसके पीछे 'प्रशांत धीरज' , तू दीवाना बहुत हुआ
[कुव्वत-ए-सब्र = power of patience; नाहिफी = weakness]
'प्रशांत धीरज'
[कुव्वत-ए-सब्र = power of patience; नाहिफी = weakness]
'प्रशांत धीरज'
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