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Saturday, 6 June 2009

Makke gaya gal mukdi nai..

मक्‍के गया गल मुक्दि नाहि,
पवें सौ सौ जुम्मे पड़ आयें,
गंगा गया गल मुक्दि नाहि,
पवें सौ सौ गोते ख़ईया,
गया गया गल मुक्दि नाहि
पवें सौ सौ पॅंड पड़ आइए
बुल्ले शाह गल तां या मुक्दि
जदू मैं नू दिलों गवाये

पढ़ पढ़ आलम फ़ाज़ल होया,
कदी अपने आप नू पढ़या नई,
जां जां वर्दां मंदिर मासिता,
कदी मन अपने विच वरया ही नहि,
ए वे रोज़ शैतान नाल लड़या
कदी नॅफ्ज़ अपने नाल लड़या ही नहि
बुल्ले शाह असमानी उड़ दिया फर्दा
जेडा घर बैठा वोनू फड़या ही नई

सिर ते टोपी ते नियत खोटी,
लेना की टोपी सिर धड़के,
तसबी फिरी पर दिल ना फिरया,
लेना की तसबी हथ फड़के,
चिल्ले कित्ते पर रब ना मिलया,
लेना की छिल्या विच वर्के
बुल्या जाग बिन दूध नई जमदा,
पावे लाल होये कदकद के

राती जागे ते शैख़ सदावें
पर रात नू जागन कुत्ते तैं थे उत्ते
राती भौके बस ना कर्दे फिर जेया लरण विच सुत्ते तैं थे उत्ते
यार ता बुहा मूल ना छड्डया पावें मरो सौ सौ जुत्ते तैं थे उत्ते
बुल्ले शाह उठ यार माना लाए नई ते बाज़ी लाई गये कुत्ते तैं थे उत्ते

ना मैं पूजा पाठ जो कीति
ते ना मैं गंगा नाहया
ना मैं पंज नामज़ा पद्रया
ते ना मैं तासबा खडकाया
ना मैं तीहो रोज़ें रखे
ते ना मैं चिल्ला गुमाया
बुल्ले शाह नू मुर्शद मिल्यया
उने ऐ वे जान बखस्या
-
हज़रत बाबा बुल्ले शाह

5 comments:

Unknown said...

बहुत ही सुन्दर रचना ।बहुत बहुत धन्यवाद । हिंदी में व्याख्या भी होती अर्थ सहित तो नयी पीड़ी को भी समझ में आता ।
आशुतोष दुबे
भोपाल

Unknown said...

अनुवाद: मक्का गया लेकिन बात नहीं बनी,न जाने कितने नमाज़ पढ़े...गंगा गया लेकिन बात नहीं बनी, न जाने कितने गोते लगाए....गया गया लेकिन बात नहीं बनी न जाने कितने पिंड दान किया...बुल्लेशाह का कहना है कि बात तो तब बनेगी जब स्वयं के अंतर से मैं को विलोपित किया जएगा... अर्थात अहं का त्याग किया जाएगा!!!!

Ritesh Nagi said...

Nicest sufi geet

Rahul jha said...

धन्यवाद

Dr. Deepali Gambhir said...

Beautiful! I keep listening it over and over again, thanks for your translation.