'God himself, Sir, does not propose to judge man until the end of his days.Why should you and I ?' (*)
PRINCIPLE 1: Don't criticise, condemn or complain
(*) Last line of the first Chapter from Dale Carnegie's book 'How to win friends and Influence People'.
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Tuesday 17 November 2009
Friday 13 November 2009
na kareeb aa tu mere ke gam-e-mudaam hun main
मुस्तकिल राह पे इक ठहरा मकाम हूँ मैं,
मुहीब रिवाएतों का एक अँधा गुलाम हूँ मैं
मुहीब रिवाएतों का एक अँधा गुलाम हूँ मैं
[मुस्तकिल = continuous, मुहीब = dreadful, रिवाएतों = traditions]
कोह-ए-गरां से टकरा के सबा मौकूफ हुई,
जो रिफत के आगे झुक गया वो सलाम हूं मैं
[कोह-ए-गरां = large mountain, सबा = wind, मौकूफ = cease/stop, रिफत = height]
कोह-ए-गरां से टकरा के सबा मौकूफ हुई,
जो रिफत के आगे झुक गया वो सलाम हूं मैं
[कोह-ए-गरां = large mountain, सबा = wind, मौकूफ = cease/stop, रिफत = height]
दिल-ए-शाद-ओ-उमंग होए है लब से इज़हार
सरगोशी है जिसकी वो मगमूम पैगाम हूँ मैं
[दिल-ए-शाद-ओ-उमंग = happiness and enthusiasm of heart , लब = lips, इज़हार = display, सुर्गोशी = whisper, मगमूम = sad, पैगाम = message]
हर शै को है यहाँ किसी न किसी से उम्मीद
जो किसी को याद न आया वो गुमनाम हूं मैं
[शै = person]
[शै = person]
आते हैं तस्सवुर में मेरी बे-इत्तिला किये हुए,
दिल दिया पूछे बगैर क्या इसलिए बदनाम हूं मैं?
[तस्सवुर = imagination/thought , बे-इत्तिला = without informing]
दिल दिया पूछे बगैर क्या इसलिए बदनाम हूं मैं?
[तस्सवुर = imagination/thought , बे-इत्तिला = without informing]
आगोश में कज़ा को ले के कहता है 'प्रशांत'
न करीब आ तू मेरे के गम-ए-मुदाम हूं मैं
[आगोश = embrace, कज़ा = death, गम-ए-मुदाम = never ending sorrow]
'प्रशांत धीरज'
न करीब आ तू मेरे के गम-ए-मुदाम हूं मैं
[आगोश = embrace, कज़ा = death, गम-ए-मुदाम = never ending sorrow]
'प्रशांत धीरज'
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