Sunday, 13 June 2010

aaj main gaya to laut ke phir na aaonga

आज  मैं गया
तो लौट के फिर ना आऊंगा

ये  आँखें ना रोक पायेंगी
ये आंसूं  ना रोक पायेंगे
तेरी बातें ना रोक पाएंगी
तेरी कसमें ना रोक पायेंगे
आज मैं गया
तो लौट के फिर ना आऊंगा

तेरी हंसी मैं भूल जाऊँगा
सारी ख़ुशी  मैं भूल जाऊँगा
सारे वादे मैं भूल जाऊँगा
सब इरादे मैं भूल जाऊँगा
आज मैं गया
तो लौट के फिर ना आऊंगा

अधजगी रातें मैं छोड़ जाऊँगा 
अनकही बातें मैं छोड़ जाऊँगा
अधूरी मुलाकातें मैं छोड़ जाऊँगा
अतृप्त ज़ज्बातें मैं छोड़ जाऊँगा
आज मैं गया
तो लौट के फिर ना आऊँगा

आधी रातो में  किसे जगाओगी
  वेवजह किसे सताओगी
कौन देखेगा राह तुम्हारी
किसे अपने किस्से सुनाओगी

रूठोगी, तो कौन तुम्हे मनायेगा
कौन अपने हाथों से खिलायेगा
कौन तुम्हे सब बातें समझायेगा
कौन तुम्हारे सपनो को अपना बनायेगा

फिर ये आँखें भर आयेंगी
और खर्जारों  से टकराएंगी
नज़र बार बार दरवाजे तक जायेंगी
पर मुझको ना ढूंढ पायेंगी

 अपने लिए ही सही
 रोक लो मुझको तुम आज, की
आज मैं गया
तो लौट के फिर ना आऊंगा 

'प्रशांत'

4 comments:

  1. This is really nice and beautiful poem Prashant. No more words to say. Really beautiful!!!

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  2. Shikha, Thanks a lot for the praise.

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  3. Bahut khoob PD Singh.

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