बोसे दिए ज़मीं को हमने पड़े पाँव तुम्हारे जिधर को,
आई चाप जिस जानिब तुम्हारी सजदे किये उधर को
[बोसे = kiss; ज़मीं = ground; चाप = sound ; जानिब = direction; सजदे = prostration]
दिल-ए-बिस्मिल की है गुजारिश तुझसे ऐ नावक-अंदाज़
कर नीम नेजा-ए-नज़र की करूँ गर्द दिल-ओ-जिगर को
[दिल-ए-बिस्मिल = wounded heart; गुजारिश = request; नावक-अंदाज़ = archer; नीम=deep; नेजा-ए-नज़र = spear like eyes ; गर्द = dust]
आई चाप जिस जानिब तुम्हारी सजदे किये उधर को
[बोसे = kiss; ज़मीं = ground; चाप = sound ; जानिब = direction; सजदे = prostration]
दिल-ए-बिस्मिल की है गुजारिश तुझसे ऐ नावक-अंदाज़
कर नीम नेजा-ए-नज़र की करूँ गर्द दिल-ओ-जिगर को
[दिल-ए-बिस्मिल = wounded heart; गुजारिश = request; नावक-अंदाज़ = archer; नीम=deep; नेजा-ए-नज़र = spear like eyes ; गर्द = dust]
फुरकत-गज़ीदा रहे हम उरूज़-ए-हिज्र में तुम्हारी
आ तमाम कर मुझको या के अपने शाक कहर को
[ फुरकत = seperation; गज़ीदा = struck/beaten; उरूज़-ए-हिज्र = highest point of seperation; तमाम = end; शाक = unbearable; कहर = calamity/punishment]
हसरत-ए-वस्ल-ए-दीदा-ए-जाना ले के हम मर गए
अब क्यूँ वो नज़र गुरेज़ हैं जब तर्क दिया हमने दहर को?
[हसरत-ए-वस्ल-ए-दीदा-ए-जाना = desire of meeting the eyes of beloved, नज़र गुरेज़ = evading eyes, तर्क = renounce; दहर = life]
माना की थे हाजतमंद पर ऐसी भी क्या बेताबी थी,
गए क्यूँ थे उस गली में हुए बेजाँ कई एक नज़र को ?
[हाजतमंद = needy ; बेजाँ = lifeless]
किये आप ही जब मुह्हबत, हुए आप ही जो रुसवा ,
फिर क्यूँ कु-बा-कु कहे 'प्रशांत' , न दो दिल किसी हजर को
[रुसवा = disgrace ; कु-बा-कु = lane to lane; हजर = stone]
'प्रशांत'
फिर क्यूँ कु-बा-कु कहे 'प्रशांत' , न दो दिल किसी हजर को
[रुसवा = disgrace ; कु-बा-कु = lane to lane; हजर = stone]
'प्रशांत'
Kya andaaz hai....
ReplyDeleteLajawaab likhte hain shayar sahab..bahut badhiya
ReplyDeleteबोसे दिए ज़मीं को हमने पड़े पाँव तुम्हारे जिधर को,
ReplyDeleteआई चाप जिस जानिब तुम्हारी सजदे किये उधर को .......
जहाँ तेरा नक़्शे कदम देखते हैं ,
ख्याबाँ ख्याबाँ इरम देखते हैं :-)
thank u all :)
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