Thursday, 21 January 2010

Bose diye zameen ko hamne...

बोसे दिए ज़मीं को हमने पड़े पाँव तुम्हारे जिधर को,
आई चाप जिस जानिब तुम्हारी सजदे किये उधर को
[बोसे = kiss; ज़मीं = ground; चाप = sound ; जानिब = direction; सजदे = prostration]

दिल-ए-बिस्मिल की है गुजारिश तुझसे ऐ नावक-अंदाज़
कर नीम नेजा-ए-नज़र की करूँ गर्द दिल-ओ-जिगर को
[दिल-ए-बिस्मिल = wounded heart; गुजारिश = request; नावक-अंदाज़ = archer; नीम=deep; नेजा-ए-नज़र = spear like eyes ; गर्द = dust]

फुरकत-गज़ीदा रहे हम उरूज़-ए-हिज्र में तुम्हारी
आ तमाम कर मुझको या के अपने शाक कहर को
[ फुरकत = seperation; गज़ीदा = struck/beaten; उरूज़-ए-हिज्र = highest point of seperation; तमाम = end; शाक = unbearable; कहर = calamity/punishment]

हसरत-ए-वस्ल-ए-दीदा-ए-जाना ले के हम मर गए
अब क्यूँ वो नज़र गुरेज़ हैं जब तर्क दिया हमने दहर को?
[हसरत-ए-वस्ल-ए-दीदा-ए-जाना = desire of meeting the eyes of beloved, नज़र गुरेज़ = evading eyes, तर्क = renounce; दहर = life]

माना की थे हाजतमंद पर ऐसी भी क्या बेताबी थी,
गए क्यूँ थे उस गली में हुए बेजाँ कई एक नज़र को ?
[हाजतमंद = needy ; बेजाँ = lifeless]

किये आप ही जब मुह्हबत, हुए आप ही जो रुसवा ,
फिर क्यूँ कु-बा-कु कहे 'प्रशांत' , न दो दिल किसी हजर को
[रुसवा = disgrace ; कु-बा-कु = lane to lane; हजर = stone]
'प्रशांत'

4 comments:

  1. Lajawaab likhte hain shayar sahab..bahut badhiya

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  2. बोसे दिए ज़मीं को हमने पड़े पाँव तुम्हारे जिधर को,
    आई चाप जिस जानिब तुम्हारी सजदे किये उधर को .......

    जहाँ तेरा नक़्शे कदम देखते हैं ,
    ख्याबाँ ख्याबाँ इरम देखते हैं :-)

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