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Sunday 6 December 2009

wo ik mozda hai jo kabhi na waqt pe aata hai....

जो गैब है जुस्तुजू उसका क्यूँ सताता है,
और नामाबर भी मुझे उसका पता नहीं बताता है
[गैब = mystry;  जुस्तुजू = quest; नामाबर = messenger]

अरसा-ए-आलम है बराहमी में तहलील
एक ही तस्वीर के कई अक्स नज़र आता है
[अरसा-ए-आलम = whole world ; बराहमी = confusion ;  तहलील = immersed; अक्स = reflection]

गफलत की जहाँ नें जिसकी पहले, फिर की खिलाफत
आज खल्क-ओ-खुल्द उसकी कब्र पे आंसों बहता है
[गफलत = ignore; खिलाफत = oppose; खल्क-ओ-खुल्द = Earth and Heaven]

हाथ तेरे हैं पर उन पे लकीरें कोई और बनता है
अहमक, उलझे हुए सिरों को तू क्यूँ कर सुलझाता है
[अहमक = idiot]

अनवार-ए-इलाही का न कर इंतज़ार 'प्रशांत'
 वो इक मोज़दा  है जो कभी न वक़्त पे आता है
[अनवार-ए-इलाही = divine help; मोज़दा = divine miracle ]

Friday 20 November 2009

hum bebas kyun hue?

जब इख्तिलाफ इतना था फिर हमनफस क्यूँ हुए ?
उन नीमबाज़ आँखों के आगे हम बेबस क्यूँ हुए ?
[इख्तिलाफ = difference of opinion, हमनफस = friends,नीमबाज़ = dark, बेबस = helpless]

एक ही राह के मुसाफिर, एक ही मंजिल को जाना,
जब हमसफ़र हैं हम फिर इतने अबस क्यूँ हुए ?
[अबस = indifferent]

कहता है वाइज़ की होती है अखलाख की जीत
कहा था सच मैंने फिर असिरान-ए-क़फ़स क्यूँ हुए ?
[वाइज़ = wise man, अखलाख  = virtue/Piety, असिरान-ए-क़फ़स = prisoner of cage]

माना तेरे इनकार-ए-ख़त को हमने अपना मुक्क़दर
अब समझा के उसाक-ए-बुत इतने बेकस क्यूँ हुए
[इनकार-ए-ख़त = letter of rejection, मुक्क़दर = fate, उसाक-ए-बुत = idol worshipers , बेकस = helpless ]

जब हुआ 'प्रशांत' इतात तेरे दर पे मौला,
बंद गोश बरावाज़-ए-कलीसा-ए-जरस क्यूँ हुए ?
[इतात = submission, दर = door, मौला = god, गोश = ears, बरावाज़-ए-कलीसा-ए-जरस = sound of church bells]
'प्रशांत'