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Monday 5 October 2009

Main khayal hoon kisi aur ka

मैं ख्याल हूं किसी और का मुझे सोचता कोई और है,
सरे आइना मेरा अक्स है पसे आइना कोई और है
[सरे = In front of, अक्स = Reflection, पसे = Behind]

मैं किसी के दस्त-ऐ-तलब में हूं तो किसी के हर्फ़-ऐ-दुआ में हूं,
मैं नसीब हूं किसी और का मुझे मांगता कोई और है
[दस्त-ऐ-तलब = hands of Pleading/Pursuit, हर्फ़-ऐ-दुआ = words of blessing]

कभी लौट आए तो न पूछना सिर्फ़ देखना बड़े गौर से,
जिन्हें रास्ते में ख़बर हुई की ये रास्ता कोई और है

अजब ऐतेबार-ओ-बेऐतबार के दरमियाँ है ज़िंदगी,
मैं करीब हूं किसी और के मुझे जनता कोई और है
[ऐतेबार-ओ-बेऐतबार = trust and distrust, दरमियाँ = between]

तुझे दुश्मनो की ख़बर न थी, मुझे दोस्तों का पता नहीं ,
तेरी दास्ताँ कोई और थी मेरा वाक्या कोई और है
[दास्ताँ / वाक्या= story, happening]

वही मुन्शिफों की रिवायतें, वही फैसलों की इबारतें,
मेरा जुर्म तो कोई और था, यह मेरी सज़ा कोई और है
[मुन्शिफों = judges, रिवायतें = tradition, फैसलों = judgements, इबारतें = compositions/compilations]

तेरी रोशनी मेरी खद्दो-खाल से मुख्तलिफ तो नहीं मगर,
तू करीब आ तुझे देख लूँ तू वही है या कोई और है
[खद्दो-खाल = body, मुख्तलिफ = different]

जो मेरी रियाज़त-ऐ-नीम-शब् को सलीम सुबहों न मिल सकी,
तो फिर इसके माने तो ये हुए की यहाँ खुदा कोई और है
[रियाज़त = spiritual practice/Discipline , नीम-शब् = dark night ]
'Saleem Kausar'
Mehdi Saab's rendition is embedded below

Putting my own Maqta to this Gazal:

'प्रशांत' जीस्त ना अपनी जी सका उसके वादे पे ऐतबार कर
पर क्या गिला करे उससे वो वो नहीं कोई और है
[जीस्त = Life, गिला = complain]

4 comments:

Yugal Joshi said...

May be during rendition Mehdi Saheb has tweaked the wordings a bit so that it can be rendered as a Ghazal with some music. He sings "Kabhi laut aayen toh poochna nahin dekhna unhain gaur se" (Not sure this sher is sung by him in this embedded rendition, but he has sung it in a different rendition".

रवि रतलामी said...

आपका मक़्ता भी ग़जब धारदार है.

Prashant said...

शुक्रिया रवि साहब :)

Amit Kumar said...

प्रशांत जी,
जिसकी मुझे एक अरसे से तलाश थी आज वो भटकते-भटकते आपके ब्लॉग में आकर पूरी हुई।
मेंहदी हसन साहब और ग़ुलाम अली साहब मेरी रुह में बसते हैं लेकिन अक्सर कोई ना कोई उर्दू लफ्ज़ मज़ा बिगाड़ देता है।
मैं तहे दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूं कि आपने शब्दों के अर्थ बता कर किसी हद तक समझने में मद़द की। बहुत अदब के साथ एक गुज़ारिश है, कई बार शब्दों के शाब्दिक अर्थ या तर्ज़ुमे शायर की असल भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते। बड़े भाई अगर आप वक्त निकाल थोड़ा और डीटेल्ड कर सकें तो बन्दा आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार रहेगा और आपकी सलामती की दुआ करेगा और आपके इस एहसान को अपने पास एक बहुमूल्य पूंजी की तरह सम्हाल कर रखेगा।
Although i understand it is not going to be easy & worth time spending.
Regards, तुस्सी ग्रेट हो ब्रो !