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Thursday 23 October 2008

Ranjish hee sahi ...

This beautiful ghazal is wriiten by Ahmed Faraz
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ,
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
[रंजिश = Anger, Annyoance]
पहले से मरासिमं ना सही फिर भी कभी तो,
रस्म-ओ-राहे दुनिया की निभाने के लिए आ
[मारासिम = Friendship]
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम,
तू मुझ से ख़फा है तो ज़माने के लिए आ
[सबब = reason]
कुछ तो मेरे पिंदार-ए-मुहब्बत का भरम रख,
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ
[पिंदार-ए-मुहब्बत = Love's Pride]
एक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिरिया से भी महरूम,
ऐ राहत-ए-जान मुझ को रुलाने के लिए आ
[लज़्ज़त-ए-गिरिया = taste of tears, महरूम = devoid,राहत-ए-जान = Peace of life]
अब तक दिल-ए-खुश फहम को तुझ से हैं उम्मीदें,
ये आखरी शम्मे भी बुझाने के लिए आ

माना की मुहब्बत का छुपाना है मुहब्बत,
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ

जैसे तुझे आते हैं ना आने के बहाने,
ऐसे ही किसी रोज़ ना जाने के लिए आ

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